हनुमान जी की सूर्य को निगलने की कहानी / रामभक्त पवनसुत हनुमान जी की कहानी

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हनुमान जी की सूर्य को निगलने की कहानी

एक बार बाल अवस्था में बहुत अधिक भूख लगने के कारण हनुमान जी ने सूरज को फल समझकर निगलने का प्रयास किया।

अमावस्या का दिन था और राहु सत्य को ग्रहण लगाने ही वाला था , रास्ते में राहु का ध्यान उन पर पड़ा तो उनका मार्ग रोका , हनुमान जी ने राहु को दूर फ़ेंक दिया। (राहु शीघ्र ही इंद्र देव के पास जाकर हनुमान जी की शिकायत करते हैं।)

फिर हनुमान जी सूर्य को निगल जाते हैं, तो संपूर्ण विश्व में अंधकार हो जाता है यह देखकर इंद्र वज्र लेकर उनकी ठुड्डी पर प्रहार करते हैं। तेज गरज के साथ हनुमान का मुंह खुलने से सूर्य देव बाहर निकल आते हैं उनकी ठुड्डी टुट जाती है और वह मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़ते हैं, जिसके चलते उनके पिता पवन देव नाराज होकर संपूर्ण विश्व से प्राण वायु को अपनी ओर खींच लेते हैं।

इससे साडी पृथ्वी व्याकुल हो उठी , संसार के सभी जीव जंतु मरने लगते हैं ,यह देखकर सभी सुर ,असुर यक्ष ,किन्नर आदि एकत्रित ब्रह्माजी की शरण में गए।

ब्रह्माजी उनसभी को लेकर पवनदेव के पास गए। मूर्छित हनुमान उनकी गोद में थे। पवन देव को मनाने के बाद ब्रह्मा जी ने हनुमान जी को पुनः स चेत किया। उसके बाद सारे देवता हनुमान जी को अपनी अपनी शक्तियां प्रदान करते हैं।

हनुमान जी को मिले वरदान

  • सूर्य देव ने उन्हें अपने तेज़ का शतांश(सौंवा हिस्सा ) प्रदान किया। ग्रहों की शांति और शास्त्र मर्मज्ञ होने का आशीष दिया।
  • इंद्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र इसे भी कठोर होगा।
  • ब्रह्मा जी ने कहा कि कोई विशेष उसके अंग को हानि नहीं कर सकता।
  • वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा।
  • यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवो ने भी अमोघ वरदान दिए।
  • यमदेव ने अवध्य और निरोग रहने का आशीष दिया।

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