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Delhi Stray Dogs : सुप्रीम कोर्ट का स्ट्रे डॉग्स पर बड़ा फैसला / विवाद, चुनौतियाँ और समाधान :

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दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों (Delhi Stray Dogs) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा आदेश दिया है, जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी है , अदालत ने स्थानीय निकायों को निर्देश दिया है कि सड़कों से सभी स्ट्रे डॉग्स को पकड़कर उनकी नसबंदी की जाए और उन्हें शेल्टर होम्स (Dog Shelters) में रखा जाए।

आदेश में यह भी कहा गया है कि कोई भी स्ट्रे डॉग दोबारा सड़क पर न छोड़ा जाए। इन आदेशों के बाद समुदाय दो भागों में बंट गई है।
एक है डॉग लवर्स, जो इसे जानवरों के अधिकारों पर हमला मानते हैं। जो पूरी तरह से इसका समर्थन कर रहे है ।
दूसरी तरफ सुरक्षा चाहने वाले लोग, जो मानते हैं कि बढ़ते डॉग अटैक और रेबीज़ के खतरे से बचने के लिए यह जरूरी कदम है। वे पूरी तरह से इसका विरोध कर रही है।अनुमान है कि दुनिया भर में रेबीज से होने वाली मौतों में से लगभग 36% मौतें भारत में होती हैं। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के अनुसार भारत में रेबीज फैलने का मुख्य कारण कुत्तों का काटना है जो लगभग 96% मामलों के लिए जिम्मेदार है।

मेरा पक्ष (how to get rid of stray dogs in delhi / Ncr):-


इस आर्टिकल में मैं दोनों पक्षों की बात करुंगी कि दोनों में क्या-क्या कमियां है और दोनों में क्या-क्या खूबियां है।
मेरा समर्थन दूसरी पक्ष के लिए है। कई बार मैं खुद अगर सड़कों पर वॉक कर रही होती हूं तो कई कुत्ते पीछे-पीछे चलने लगते हैं और मैं बहुत ही ज्यादा असहज महसूस करने लगती हूं क्योंकि मुझे यह नहीं पता होता कि वह क्यों मेरे पीछे आ रहे हैं और ऐसा लगता है कि वह कहीं पीछे से मुझे काट तो नहीं लेंगे ।उस वक्त मन काफी भयभीत सा हो जाता है ।
इसका ये मतलब नहीं कि कुत्तों के प्रति अन्याय किया जाए। मेरा मतलब सिर्फ इन बातों से है कि सड़कों पर घूम रहे आवारा कुत्ते की समस्या पर विचार एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है । अगर समय रहते इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो चंद वर्षों में ये एक विकराल समस्या का रूप धारण कर लेगी । इनकी संख्या किस रफ्तार से बढ़ रही है इनका आंकलन आप आसानी से यहां पर कर सकते हैं –

भारत में स्ट्रे डॉग्स की स्थिति

2019 में पशुपालन मंत्रालय की रिपोर्ट: 1.53 करोड़ से ज्यादा स्ट्रे डॉग्स।
2024 की रिपोर्ट: 6.05 करोड़ स्ट्रे डॉग्स (द स्टेट ऑफ़ पेट होमलेसनेस रिपोर्ट)।
इनकी संख्या जिस रफ्तार से बढ़ रही है अगर इन पर नियंत्रण न किया गया तो शायद आने वाले समय में मुसीबतें कई गुणा अधिक बढ़ जाएगी ।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या कहता है?

28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने डॉग बाइट्स, रेबीज़ के मामलों और मौतों की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए स्वतः संज्ञान (Suo Moto) लिया। सुनवाई के बाद दिए गए मुख्य निर्देश इस प्रकार हैं—

* सभी स्ट्रे डॉग्स को तुरंत पकड़ा जाए।
*उनकी नसबंदी की जाए और फिर डॉग शेल्टर्स में शिफ्ट किया जाए।
*स्थानीय निकायों को इसके लिए कुछ हफ्तों का समय दिया गया।
*डॉग शेल्टर्स बनाने की व्यवस्था इस अवधि में पूरी हो।
*हर दिन पकड़े गए कुत्तों का रिकॉर्ड रखा जाए।
*कोई भी पकड़ा गया कुत्ता दोबारा सड़क पर नहीं छोड़ा जाए।
* शिकायत मिलने पर 4 घंटे के भीतर कार्रवाई हो।
*आदेश का विरोध करने वालों पर भी कार्रवाई की जा सकती है।

 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला अचानक नहीं लिया। पिछले कुछ वर्षों में आवारा कुत्तों के हमलों और रेबीज़ के कारण मौतों में तेजी आई है। महाराष्ट्र , गुजरात , तमिलनाडु , कर्नाटक और बिहार जनवरी 2025 में डॉग बाइट्स के टॉप राज्यों में रहे।

रेबीज़ वायरस खासतौर पर खतरनाक है क्योंकि एक बार लक्षण दिखने पर इसका कोई इलाज नहीं होता और मौत लगभग तय होती है। हाल ही में कबड्डी खिलाड़ी बृजेश सोलंकी की मौत और गाजियाबाद के 14 वर्षीय बच्चे की दर्दनाक मौत ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया। इसपर भी मेरी लिखी हुई आर्टिकल जरूर पढ़ें , इससे संबंधित वीडियो भी वहां पर देख सकते हैं  ।

रेबीज़ : एक छोटी सी गलती, जान का बड़ा खतरा Kabaddi Player Brajesh Solanki Death

 

डॉग लवर्स बनाम आम लोग — दो अलग नजरिए

 

सबसे पहले प्रकाश डालते हैं दोनों पक्षों पर। क्या कहना है दोनों पक्षों का , किस आधार पर वे पक्ष और विपक्ष में हैं ।

डॉग लवर्स की दलीलें

शेल्टर होम्स की भारी कमी है, अचानक इतने कुत्तों को रखना असंभव है।

एबीसी (Animal Birth Control) रूल्स और Prevention of Cruelty to Animals Act पहले से मौजूद हैं, बस उनका पालन करना चाहिए।

दिल्ली में रेबीज़ के मामले कम हैं, इसलिए पैनिक क्रिएट करना सही नहीं।

इतनी बड़ी संख्या में डॉग्स को हटाने से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ेगा।


 आम लोगों की दलीलें

बच्चों और बुजुर्गों पर हमलों की घटनाएं रोज सामने आती हैं।

हर महीने लाखों लोग कुत्तों के काटने से अस्पताल पहुंचते हैं।

जब तक शेल्टर तैयार न हों, अस्थायी शेल्टर में रखकर सड़कों को सुरक्षित किया जाए।

सार्वजनिक स्थानों पर डॉग फीडिंग से हमलों का खतरा बढ़ता है।


विदेशी नस्ल बनाम देसी कुत्ते का सवाल

 

बहस का एक दिलचस्प पहलू यह है कि भारत में डॉग लवर्स अक्सर विदेशी नस्लों के कुत्तों (जैसे जर्मन शेफर्ड, लैब्राडोर, गोल्डन रिट्रीवर, पग, साइबेरियन हस्की) को घर में पालते हैं, कुछ लोग भारतीय नस्ल के अच्छे गार्ड डॉग्स (जैसे बखरवाल, रामपुर ग्रेहाउंड) पालते हैं, लेकिन यह संख्या बहुत कम है। लेकिन देसी नस्ल (Indian Pariah Dog) को अपनाने से बचते हैं।

देसी नस्ल के कुत्ते अधिकतर सड़कों पर ही रह जाते हैं, जिससे स्ट्रे डॉग्स की संख्या बढ़ती है।यदि डॉग लवर्स विदेशी नस्ल के महंगे कुत्ते न खरीद कर इन स्ट्रीट डॉग्स को अपनाना शुरू करें तो कुछ हद तक इन समस्या का समाधान जरूर होगा ।

सबसे बड़ी चुनौती: डॉग शेल्टर की कमी

 

*सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सबसे बड़ा सवाल है — करोड़ों स्ट्रे डॉग्स को रखा कहाँ जाएगा?

*पूरे भारत में सिर्फ 3500 शेल्टर्स हैं, वो भी सभी आवारा जानवरों के लिए।

*स्ट्रे डॉग्स के लिए अलग से सरकारी शेल्टर लगभग नहीं के बराबर हैं।

*इंटरनेट पर पाए गए कुछ आंकड़ों के अनुसार
दिल्ली में 8 लाख डॉग्स के लिए एक भी सरकारी डॉग शेल्टर नहीं।
गुरुग्राम में क्षमता: 500 डॉग्स, शेल्टर में जगह: सिर्फ 100।
नोएडा में डेढ़ लाख डॉग्स, कोई सरकारी शेल्टर नहीं, सिर्फ 4 प्राइवेट शेल्टर किराए पर।
गाजियाबाद में 48,000 डॉग्स, शेल्टर: शून्य।

स्ट्रे डॉग्स और समाज: आगे की चुनौतियां और समाधान

 

1. विशाल पैमाने पर नसबंदी अभियान

विशाल पैमाने पर नसबंदी अभियान स्ट्रे डॉग्स की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी और मानवीय तरीका है। इसमें नगर निगम, एनजीओ और वेटरनरी डॉक्टर मिलकर एक व्यवस्थित योजना के तहत बड़े स्तर पर नसबंदी करते हैं। अगर हर शहर और कस्बे में नियमित रूप से ऐसे अभियान चलें तो नई स्ट्रे डॉग्स की संख्या घटेगी, सड़क पर कुत्तों का आक्रामक व्यवहार भी कम होगा और समाज में इंसान और जानवरों के बीच संतुलन बनेगा।

 


2. अस्थायी और स्थायी शेल्टर होम्स का निर्माण

नगर निगम स्तर पर बड़े शेल्टर बनाए जाएं।
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल अपनाया जाए।अस्थायी और स्थायी शेल्टर होम्स का निर्माण स्ट्रे डॉग मैनेजमेंट की अहम ज़रूरत है। अस्थायी शेल्टर उन जगहों पर बनाए जा सकते हैं जहां तुरंत कुत्तों को पकड़कर इलाज या नसबंदी करनी हो। वहीं, स्थायी शेल्टर लंबे समय तक रहने और देखभाल के लिए होते हैं, जिनमें भोजन, दवाई और खेलने की जगह उपलब्ध कराई जाती है। अगर शहरों और गाँवों में इन दोनों तरह के शेल्टर संतुलित संख्या में बनाए जाएं, तो स्ट्रे डॉग्स को सुरक्षित माहौल मिलेगा और समाज में डर भी कम होगा।

 

3. देसी नस्ल को अपनाने के लिए प्रोत्साहन

देसी नस्ल को अपनाने के लिए प्रोत्साहन देना स्ट्रे डॉग्स की संख्या कम करने का सबसे कारगर तरीका हो सकता है। लोगों को समझाना ज़रूरी है कि देसी कुत्ते ज्यादा मजबूत, कम बीमार पड़ने वाले और स्थानीय वातावरण के अनुकूल होते हैं। सरकार या एनजीओ अगर फ्री वैक्सीनेशन, कम कीमत पर एडॉप्शन कैंप और अवार्ड या टैक्स में राहत जैसी स्कीम्स लाएं तो लोग विदेशी नस्लों के बजाय देसी डॉग्स अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।

4- एनजीओ और वॉलंटियर्स के साथ तालमेल 

एनजीओ और वॉलंटियर्स के साथ तालमेल इस मिशन की सबसे मजबूत कड़ी हो सकती है। एनजीओज़ के पास पहले से ही अनुभव और नेटवर्क होता है, वहीं वॉलंटियर्स फील्ड लेवल पर पकड़ने, खिलाने और देखभाल में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यदि प्रशासन इनके साथ मिलकर काम करे तो बड़े स्तर पर डॉग शेल्टर प्रबंधन आसान और असरदार हो सकता है।

5- डेटा और मॉनिटरिंग सिस्टम

डेटा और मॉनिटरिंग सिस्टम का मतलब है कुत्तों से जुड़ी सारी जानकारी को डिजिटल रूप में रखना और उस पर लगातार नज़र रखना। इसमें हर डॉग का रजिस्ट्रेशन नंबर, मेडिकल हिस्ट्री, वैक्सीनेशन, नसबंदी की स्थिति, और लोकेशन दर्ज होती है। इस डेटा को एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म या मोबाइल ऐप से ट्रैक किया जा सकता है। मॉनिटरिंग सिस्टम के ज़रिए अधिकारी और एनजीओ देख सकते हैं कि किस शेल्टर में कितने डॉग्स हैं, उनकी सेहत कैसी है, और किस जगह ज्यादा जरूरत है। इससे फंड का सही इस्तेमाल होता है, पारदर्शिता बढ़ती है और समय रहते समस्याओं को सुलझाना आसान हो जाता है।

 

 

 

FAQ

Most frequent questions and answers

यह Prevention of Cruelty to Animals Act के तहत अपराध है।

इसके लिए जेल और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।

जानवरों के साथ हिंसा की अनुमति नहीं है।

केवल अधिकृत पशु चिकित्सक ही गंभीर मामलों में निर्णय ले सकते हैं।

मानवीय तरीके से ही नियंत्रण संभव है।

दिल्ली में MCD के डॉग कंट्रोल यूनिट यह काम करती है।

उनके पास पकड़ने के लिए खास टीमें और वाहन होते हैं।

कुत्तों को मानवीय तरीके से पकड़ा जाता है।

फिर उन्हें नसबंदी केंद्र ले जाया जाता है।

आगे अब उन्हें शेल्टर में रखना होगा।

 

दिल्ली में करीब 8 लाख स्ट्रे डॉग्स हैं, जिन्हें पकड़ने का काम शुरू होगा।

नसबंदी के बाद उन्हें शेल्टर में रखा जाएगा।

सड़क पर डॉग फीडिंग कम करने की अपील की जा रही है।

डॉग बाइट मामलों को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है।

अभी शेल्टर्स की कमी सबसे बड़ी चुनौती है।

 

 

पूरी तरह हटाना कानूनी और नैतिक दोनों कारणों से कठिन है।

नसबंदी और शेल्टर ही स्थायी समाधान हैं।

सड़क से हटाने के लिए बड़े पैमाने पर व्यवस्था चाहिए।

एनजीओ और सरकार को मिलकर काम करना होगा।

जनता को भी डॉग फीडिंग के नियमों का पालन करना होगा।

 

ऐसे कुत्ते को स्ट्रे डॉग कहते हैं।

वे अक्सर बिना मालिक के होते हैं।

खाना खोजने के लिए घूमते रहते हैं।

कभी-कभी आक्रामक भी हो सकते हैं।

इनकी संख्या नियंत्रण में रखना जरूरी है।

 

अकेले सुनसान जगह पर न चलें।

खाना या बैग लटकाकर न जाएं।

कुत्तों की आंखों में सीधा न देखें।

हल्का-फुल्का शोर करके ध्यान भटकाएँ।

जरूरत पड़ने पर स्थानीय टीम को कॉल करें।