कैसे टली निमिषा की फाँसी/Nimisha Priya Yemen Case
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Toggleकैसे टली निमिषा की फाँसी: निमिषा की फांसी की तारीख 16 जुलाई 2025 तय थी। लेकिन फांसी से कुछ घंटे पहले भारत के ग्रैंड मुफ्ती और सुन्नी नेता कथापुरम ए.पी. अबूबकर मुसलियार यमन पहुंचे। उन्होंने वहां के सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज से संपर्क किया।दोनों ने मिलकर यमन के सुप्रीम कोर्ट के एक जज और तलाल के भाई से बातचीत की। इसके बाद जज ने फांसी पर रोक लगा दी और ब्लड मनी पर बात आगे बढ़ाई गई।
कौन हैं निमिषा प्रिया?
निमिषा प्रिया केरल के पलक्कड़ जिले की रहने वाली एक नर्स हैं। साल 2011 में वो अपने पति टोनी थॉमस और छोटे बच्चे के साथ यमन के सना शहर गई थीं। वहां उन्होंने नौकरी की, लेकिन आमदनी इतनी नहीं थी कि परिवार का खर्च चल सके। इसलिए साल 2014 में उनके पति और बेटा वापस भारत लौट आए, लेकिन निमिषा यमन में ही रुक गईं और वहीं एक क्लीनिक खोलने की योजना बनाई।
क्लीनिक शुरू करने की कोशिश और विवाद की शुरुआत
निमिषा ने अपने पति के दोस्त तलाल अब्दुल महदी से क्लीनिक खोलने में मदद मांगी, लेकिन उसने मना कर दिया। बाद में उनके दूसरे दोस्त अब्दुल हनान ने उनकी मदद की और 2015 में उन्होंने अपना क्लीनिक शुरू कर लिया।
जब क्लीनिक अच्छा चलने लगा, तो तलाल ने पैसों के लिए निमिषा को परेशान करना शुरू कर दिया। जब उन्होंने पैसे देने से इनकार किया, तो तलाल ने फर्जी कागज़ों के ज़रिए दावा किया कि वो निमिषा का पति है। परेशान होकर निमिषा ने पुलिस में शिकायत की और तलाल को गिरफ्तार करवा दिया।
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हत्या, गिरफ्तारी और सजा
जेल से छूटने के बाद तलाल ने बदला लेने की कोशिश की। उसने निमिषा का पासपोर्ट रख लिया और पैसे मांगने लगा। खुद को बचाने के लिए और पासपोर्ट वापस लेने के इरादे से निमिषा ने उसे एक बेहोशी का इंजेक्शन दे दिया, लेकिन ओवरडोज़ के कारण उसकी मौत हो गई।
निमिषा और अब्दुल हनान ने मिलकर तलाल की लाश के टुकड़े किए और पानी की टंकी में डाल दी। पुलिस ने जांच में यह पता लगा लिया और अगस्त 2017 में दोनों को गिरफ्तार कर लिया।
अदालत का फैसला
शुरुआत में निचली अदालत ने दोनों को उम्र कैद की सज़ा दी। लेकिन जब मामला यमन हाई कोर्ट गया, तो निमिषा की सजा को उम्रकैद से बढ़ाकर फांसी में बदल दिया गया। वहीं अब्दुल हनान को उम्रकैद ही मिली।
क्या है ब्लड मनी?
यमन में इस्लामी कानून यानी शरिया लागू है। इसमें किसी की हत्या करने पर सजा मौत की होती है। लेकिन एक विकल्प यह भी होता है कि अगर मृतक का परिवार माफ कर दे या पैसा ले ले (जिसे ब्लड मनी या अरबी में “दिया” कहा जाता है), तो सजा माफ हो सकती है।
तलाल के परिवार ने 2022 में ब्लड मनी के तौर पर 50 मिलियन यमनी रियाल यानी करीब 1.5 करोड़ रुपये मांगे।
भारत सरकार और निमिषा की मां की कोशिशें
निमिषा की मां ने बेटी को बचाने के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। वह केरल हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गईं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा। सरकार ने कहा कि यमन में कोई मान्य सरकार नहीं है, वहां हूती विद्रोहियों का कब्ज़ा है, इसलिए बातचीत करना मुश्किल है।
इसके बावजूद निमिषा की मां यमन पहुंचीं और 8.59 करोड़ रुपये की ब्लड मनी की पेशकश की, जिसमें 34 लाख की मदद केंद्र सरकार ने की। फिर भी तलाल के परिवार ने पैसा लेने से इनकार कर दिया।
फांसी से ठीक पहले क्या हुआ? कैसे टली निमिषा की फाँसी
निमिषा प्रिया की फांसी की तारीख 16 जुलाई 2025 तय थी।
कैसे टली निमिषा की फाँसी :
यमन की अदालत ने उन्हें हत्या के मामले में सजा-ए-मौत सुनाई थी। लेकिन ऐन वक्त पर भारत के ग्रैंड मुफ्ती और सुन्नी नेता कथापुरम ए.पी. अबूबकर मुसलियार ने हस्तक्षेप किया। वो खुद यमन पहुंचे और वहां के प्रसिद्ध सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज से मुलाकात की। दोनों धार्मिक नेताओं ने मिलकर यमन के सुप्रीम कोर्ट के एक जज और मृतक तलाल अब्दुल महदी के परिवार खासकर उसके भाई से बातचीत की।
इस गंभीर और भावनात्मक अपील के बाद जज ने फांसी पर अस्थायी रोक लगाने का फैसला किया, ताकि तलाल के परिवार को ब्लड मनी लेने के लिए मनाया जा सके। यमन के शरिया कानून में ब्लड मनी (दिया) के जरिए माफी का प्रावधान है। अब दोनों धर्मगुरु पीड़ित परिवार को मुआवजा लेने और निमिषा को माफ करने के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं।
इस पहल के कारण निमिषा को फांसी से कुछ समय के लिए राहत मिली है और उम्मीद बनी है कि अगर ब्लड मनी पर सहमति हो जाती है, तो उन्हें बचाया जा सकता है और वह भारत लौट सकती हैं।
अब आगे क्या?
अब सब कुछ तलाल के परिवार के हाथ में है। अगर वे ब्लड मनी लेने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो निमिषा को फांसी से माफ किया जा सकता है और वो भारत लौट सकती हैं।
• निमिषा ने आत्मरक्षा में हत्या की लेकिन मामला बढ़ गया।
• यमन के शरिया कानून के अनुसार उसे मौत की सजा मिली।
• भारत सरकार और मां की लाख कोशिशों के बावजूद समाधान नहीं निकल पाया।
• अब भारत के धार्मिक नेताओं के हस्तक्षेप से उसकी जान बची है।
• अंतिम फैसला अब तलाल के परिवार पर निर्भर है।
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इस घटना से कई सवाल उठते हैं:
• विदेशों में भारतीयों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए?
• सरकार ऐसे मामलों में कैसे हस्तक्षेप कर सकती है?
• महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या वैश्विक स्तर पर कोई सहायता तंत्र होना चाहिए?⸻