भारत की जल नीति में बड़ा बदलाव: सिंधु जल समझौते के बाद अब गंगा जल संधि में बदलाव में भारत

पाकिस्तान को सिंधु जल संधि पर झटका देने के बाद अब भारत ने पूरब की ओर रुख किया है — और इस बार निशाना है बांग्लादेश।
पानी एक सीमित संसाधन है और अंतरराष्ट्रीय नदियों को लेकर देशों के बीच जल साझा करने की संधियाँ दशकों से बनी हुई हैं। भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ कई जल संधियाँ की हैं जिनमें दो प्रमुख हैं — सिंधु जल संधि (भारत-पाकिस्तान) और गंगा जल संधि (भारत-बांग्लादेश)।
कोलकाता पोर्ट, फरक्का पावर प्लांट और किसानों को ज़रूरत है ज्यादा पानी की — और बांग्लादेश की नई यूनुस सरकार के पाकिस्तान-चीन झुकाव ने भारत को सख्त कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। अब भारत सरकार इन पुराने समझौतों की समीक्षा कर रही है। हाल ही में सिंधु जल समझौते में बदलाव की कोशिश के बाद अब भारत ने गंगा जल संधि को लेकर बांग्लादेश से बात करने का मन बनाया है।

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सिंधु जल समझौता: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

“गंगा जल संधि” के पहले थोड़ा सा हम पाकिस्तान के साथ हुए “सिंधु जल समझौता “को भी समझ लेते हैं ।

सिंधु जल संधि क्या है?

यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी।
इसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षरित किया था।

संधि के मुख्य बिंदु

पूर्वी नदियाँ (सतलुज, ब्यास, रावी) भारत के उपयोग के लिए सुरक्षित हैं।
पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान के लिए आरक्षित हैं, लेकिन भारत कुछ सीमित मात्रा में इनका उपयोग कर सकता है (जैसे—सिंचाई, पनबिजली)।

समस्याएँ और भारत की चिंता

पाकिस्तान ने कई बार भारत के बांधों और परियोजनाओं को लेकर आपत्ति जताई है।
भारत का तर्क है कि वह संधि की सीमाओं के भीतर रहकर ही निर्माण कर रहा है।
हाल ही में भारत ने सिंधु जल संधि की समीक्षा की मांग की और एक संशोधन प्रस्ताव भी भेजा।

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गंगा जल संधि क्या है?

यह गंगाजल संधि भारत और बांग्लादेश के बीच दिसंबर 1996 में की गई थी, जिसका उद्देश्य फरक्का बैराज के पास गंगा नदी के पानी का साझा उपयोग तय करना था, खासकर मार्च से मई के बीच, जब पानी की मात्रा सबसे कम होती है। पहले इस संधि को अगले 30 वर्षों तक बढ़ाने की योजना थी।
लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत का रुख बदल गया। विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पहले भारत इसके दीर्घकालीन विस्तार के पक्ष में था, लेकिन अब विकास और बढ़ती जल जरूरतों को देखते हुए भारत चाहता है कि यह संधि केवल 10 से 15 साल के लिए हो, ताकि समय के साथ जरूरत के अनुसार उसमें बदलाव हो सके।
फिलहाल की व्यवस्था के अनुसार, मार्च 11 से मई 11 के बीच भारत और बांग्लादेश को बारी-बारी से 10-10 दिन के लिए 35,000 क्यूसिक पानी मिलता है। अब भारत इस दौरान अतिरिक्त 30,000 से 35,000 क्यूसिक पानी की मांग कर रहा है। ऐसे में, जैसे पाकिस्तान पर पानी के मोर्चे पर सख्ती दिखाई गई थी, अब बांग्लादेश पर भी ‘जल कूटनीति’ का असर दिखाने की तैयारी है।

फरक्का बैराज का महत्व

फरक्का बैराज का निर्माण भारत ने 1975 में किया था ताकि हुगली नदी में सिल्ट हटाकर कोलकाता बंदरगाह को जीवित रखा जा सके।
इससे पानी को मोड़कर बंगाल की खाड़ी की ओर भेजा जाता है।

बांग्लादेश की चिंता

बांग्लादेश का कहना है कि फरक्का से पानी रोके जाने के कारण वहां की नदियों में पानी की कमी हो जाती है, जिससे कृषि और जीवन प्रभावित होता है।
गंगा नदी बांग्लादेश में पद्मा कहलाती है और यह वहां की जीवनरेखा है।
अप्रैल से मई के बीच का समय खेती के लिए बहुत अहम होता है, खासकर बांग्लादेश में धान की फसल उगाने के लिए। इसी समय को लीन पीरियड कहते हैं जब गंगा नदी में पानी की मात्रा कम होती है।
इस दौरान भारत और बांग्लादेश को बारी-बारी से 10-10 दिन के लिए 35,000 क्यूसिक पानी दिया जाता है। अगर भारत यह पानी कम कर देता है, तो बांग्लादेश की खेती पर सीधा असर पड़ेगा। साथ ही, एक खास मछली जो इस मौसम में अंडे देती है, उसे भी ताजा पानी चाहिए होता है – ऐसे में उसका उत्पादन और व्यापार भी प्रभावित होगा। इसके अलावा, बांग्लादेश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री जो बड़ी मात्रा में पानी इस्तेमाल करती है, वह भी प्रभावित होगी। यानी भारत के इस एक फैसले से बांग्लादेश की खेती, मछली पालन और कपड़ा उद्योग – तीनों क्षेत्रों को भारी नुकसान हो सकता है।

भारत की नई जल नीति और रणनीति

क्यों जरूरी हुआ पुनर्विचार?

पिछले कई दशकों में जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या, और जल संकट ने जल संसाधनों पर बहुत दबाव डाला है।
पुराने समझौतों की शर्तें अब वर्तमान हालातों के अनुरूप नहीं हैं।
भारत यह मानता है कि उसे अपनी नदियों का अधिकतम और न्यायसंगत उपयोग करने का अधिकार है।

सिंधु के बाद अब गंगा संधि में बदलाव क्यों?

सिंधु जल संधि की समीक्षा की प्रक्रिया के बाद अब भारत गंगा जल संधि की भी समाप्ति अवधि (2026) के नजदीक आने पर इसकी पुनर्रचना करना चाहता है।

भारत चाहता है कि इस बार जल का बंटवारा वैज्ञानिक तरीके से हो और दोनों देशों को समान लाभ मिले।

भारत-बांग्लादेश संबंधों पर प्रभाव

मौजूदा संबंध कैसे हैं?

भारत और बांग्लादेश के बीच इस समय मजबूत राजनयिक और व्यापारिक संबंध हैं।

भारत ने बांग्लादेश को कोविड वैक्सीन, बिजली आपूर्ति और रेलवे कनेक्टिविटी में सहायता दी है।

संभावित बातचीत की दिशा

भारत ने संकेत दिए हैं कि वह जल संधि को राजनीतिक विवाद नहीं बनाना चाहता।

यह बातचीत संवेदनशील होगी लेकिन उद्देश्य होगा — साझा समाधान।

जल विवादों पर भविष्य की दृष्टि

तकनीक और विज्ञान की भूमिका।

अब जल वितरण को लेकर डेटा आधारित निर्णय लिए जा सकते हैं।।उपग्रह चित्रण, डिजिटल मैपिंग और हाइड्रोलॉजिक मॉडल्स के जरिये बेहतर जल नीति बनाई जा सकती है।विज्ञान की मदद से अब नदियों की निगरानी रियल टाइम में संभव है। सेंसर और सैटेलाइट डाटा से पानी के बहाव, वर्षा और जल स्तर का पता चलता है। इससे दोनों देश मिलकर जल का न्यायसंगत वितरण कर सकते हैं और विवाद से बच सकते हैं।

डिजिटल तकनीकों जैसे GIS और हाइड्रोलॉजिक मॉडलिंग से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में नदी का प्रवाह कैसे बदलेगा। इससे बाढ़, सूखा या जल संकट के लिए पहले से तैयारी की जा सकती है, जो नीति निर्धारण में सहायक होता है।

भारत और बांग्लादेश के बीच यदि साझा जल डेटा पोर्टल बनें, तो पारदर्शिता और भरोसा बढ़ेगा। तकनीक के ज़रिए जल गुणवत्ता और प्रवाह दोनों का बेहतर विश्लेषण हो सकता है, जिससे नीतियाँ वैज्ञानिक और व्यावहारिक बन सकें।

साझी नदी = साझा ज़िम्मेदारी

नदियाँ सीमाओं से नहीं बंधतीं। अगर भारत और बांग्लादेश सहयोग करें, तो नदी पार प्रबंधन एक आदर्श मॉडल बन सकता है।।साझा नीतियाँ बाढ़ नियंत्रण, प्रदूषण रोकथाम और जैव विविधता को भी बढ़ा सकती हैं।

राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण

विपक्ष और विशेषज्ञों की राय

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि पुराने समझौते टूटने से राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है।वहीं कुछ का मानना है कि नये युग के लिए नयी नीतियाँ बननी ही चाहिए।

जनता और किसानों की भूमिका

भारत और बांग्लादेश दोनों में खेती largely नदियों पर निर्भर है।इसलिए जल बंटवारा सीधे आम जनता की आजीविका से जुड़ा है।

आगे  की राह

भारत का रुख अब स्पष्ट है — वह अपने जल संसाधनों का संप्रभु अधिकार के तहत बेहतर उपयोग करना चाहता है, लेकिन पड़ोसी देशों से मिलजुलकर, बातचीत के जरिये और वैज्ञानिक तरीके से। सिंधु जल संधि की तरह गंगा जल संधि में भी अगर दोनों देश भविष्य के लिए मिलकर नया रास्ता बनाएं, तो यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक सकारात्मक संदेश होगा।

गंगा केवल एक नदी नहीं, संस्कृति और जीवन की प्रतीक है। भारत-बांग्लादेश का यह नया संवाद अगर सफल होता है, तो यह न केवल जल नीति का उदाहरण बनेगा, बल्कि पड़ोसी देशों के शांतिपूर्ण सहयोग की मिसाल भी बनेगा।

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