लकड़ी का कटोरा स्टोरी / छोटी कहानी

लकड़ी का कटोरा स्टोरी / छोटी कहानी

आज की कहानी “लकड़ी का कटोरा “एक पारिवारिक मूल्यों पर आधारित है। हमेशा हमें अपने माँ बाप और बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। उनके प्रति स्नेह का भाव रखना चाहिए। बड़े बुजुर्गों के प्रति प्यार और उनके साथ बिताये हुए कुछ पल ही उनके ख़ुशी का बहुत बड़ा कारण होता है। हम उनके साथ जैसा बर्ताव करते हैं हमारे बच्चे भी देखकर वैसा ही सीखते हैं।

लकड़ी का कटोरा
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एक वृद्ध व्यक्ति अपने बेटे के पास रहने के लिए गांव से शहर आया । अधिक उम्र होने के कारण उसे कम दिखाई पड़ती थी और उसके हाथ भी कांपते थे ।

बेटे का घर अधिक बड़ा न था । छोटे से घर में ही वह अपने बेटे बहु और छोटे से पोते के संग रहने लगा।
चारों एक साथ ही डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाते थे । हाथ कांपने के कारण खाते उसे बहुत परेशानी होती थी। कभी दूध हाथ से छलक जाता तो कभी चम्मच से मटर के दाने गिर जाते।
वृद्ध व्यक्ति के इस हरकत को बेटे और बहू ने एक दो दिनों तक सहन किया लेकिन बाद में उन्हें बहुत चिढ़ होने लगी । वे आपस में बातें करने लगे की आखिर कब तक हम सब इनके कारण अपने खाने का मजा किरकिरा करते रहेंगे।
अगले दिन जब खाने का वक्त हुआ तो बेटे ने एक पुराने मेज को कमरे के कोने में लगा दिया ।अब बूढ़े पिता को वही बैठ कर अकेले भोजन करना था ।
उन्हें खाने के लिए बर्तन की जगह एक लकड़ी का कटोरा दे दिया गया ताकि और बर्तन टूट फूट न सके ।
वे तीनों अपनी जगह पर ही खाना खा रहे थे ।

तीनों अपनी टेबल पर खाते हुए जब बुजुर्ग की ओर देखते , तो उनकी आंखों में आंसू दिखाई देते। यह देखकर भी उनके बेटे और बहू का दिल नहीं पिघला और वह उनकी छोटी से छोटी गलती पर भी ढेरों बातें सुना देते। वहां बैठा बालक भी बड़े ध्यान से यह सब देखता रहता और अपने आप में मगन रहता है ।
एक रात खाने से पहले मां-बाप ने बच्चों को कुछ करते हुए देखा। तब उन्होंने उससे पूछा , “अरे तुम क्या कर रहे हो “?तब बच्चे ने जवाब दिया कि मैं आप लोगों के लिए लकड़ी का कटोरा बना रहा हूं । ताकि जब मैं बड़ा हो जाऊं तो आप लोग इसमें खा पाए और फिर वह अपने काम में लग गया।

इस बात का उसके मां-बाप पर बहुत गहरा असर हुआ। उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे ।अब वे दोनों समझ चुके थे कि उन्हें क्या करना है । अतः उस रात वे दोनों अपने पिता को डाइनिंग टेबल पर वापस ले आए और कभी उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया ।

निष्कर्ष  – 

हम अक्सर शब्दों से तो बच्चों को नैतिक शिक्षा दे देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं की असली नैतिक शिक्षा का प्रभाव हमारे शब्दों से नहीं बल्कि हमारे कर्मों से हमारे बच्चों पर पढ़ती है । अक्सर हम बच्चों को सिर्फ शब्दों में शिक्षा दे देते हैं कि बड़ों का अनादर न करो। उनसे अच्छा बर्ताव करो। लेकिन व्यवहार में खुद हम इसके विपरीत करते हैं , इसलिए अपनों से बड़ों का हमें कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए ताकि जिसे सीखकर हमारे बच्चे भी हमारे लिए लकड़ी का कटोरा बनाना शुरू कर दें।